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बुधवार, 22 मार्च 2023

आज के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं*

 

·      आज के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं

 

एक गंभीर प्रश्न है कि इंग्लिश मीडियम से या हिन्दी मीडियम से पढ़ कर आने वाले साधारण स्तर के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं और क्या उपलब्ध है, चाहे हिंदी में या इंग्लिश में। वे शायद आमतौर पर व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब पर ही निर्भर रहते हैं। क्या यह युवाओं को कैरियर, प्रेम और विवाह के प्रारंभिक सालों तथा सामाजिक राजनीतिक  मामलों पर सही पूरी जानकारी देने के लिए काफी है ? इसी तरह हिन्दी मीडियम के बहुत मेधावी युवा ज्ञान, मनोरंजन, विचारोत्तेजक सामग्री कुछ पढ़ पा रहे हैं ? दोनों समुह के युवा जीवन जीने की तकनीक जो समाचारों में नहीं मिलती कहां से लेते हैं या ले सकते हैं। हम लोग दोनों समुह के लायक काफी सामग्री दें रहे हैं ?

 

                              आज मनोरंजन के रूप में मोबाइल का इस्तेमाल युवा वर्ग जमकर कर रहा है, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम सहित यू ट्यूब चैनल पर तरह तरह की सामग्री परोसी जा रही है। प्रतियोगिता से सम्बंधित किताबें और पत्रिकाएं तो युवा वर्ग पढ़ रहा है, लेकिन मनोरंजन के लिए पत्र पत्रिकाएँ पढ़ने का प्रचलन घटते जा रहा है। पहले मनोरंजन के लिए बच्चे, युवा और राजनीति से अभिरुचि रखने वाले लोग माया, इंडिया टुडे, आउटलुक जैसी पत्रिकाएँ ख़रीदकर पढ़ते थे। दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएँ ख़ासकर सरस सलिल तो हर घर में देखने को मिलती थी। उस समय मनोरंजन और जानकारी के लिए हर उम्र और वर्ग के लोग पत्रिकाएँ पढ़ते थे। आज इसमें कमी आई है प्रतियोगी छात्र गंभीर लेख और जानकारी दैनिक अख़बार के संपादकीय पेज से लेते हैं।

 

             मेरी जानकारी में तो OTT युवाओं के मनोरंजन का अब पहला माध्यम बना हुआ है। मोबाइल पर OTT प्लेटफार्म उपलब्ध हैं इसीलिए वह उनकी ज़रूरत बना हुआ है। वाट्स ऐप या दूसरे सोशल मीडिया लैपटॉप में भी चलाए जाते हैं। जिन्हें प्रिंट में पढ़ने का शौक है वो अब भी पढ़ते हैं। हिंदी भी पढ़ते हैं। उन्होंने अपनी पाठ्य पुस्तकों में हिंदी कहानियां और कविताएं पढ़ी हैं तो वो उनके लिए अपरिचित नहीं है। लेकिन OTT और सोशल मीडिया उनकी पहली पसंद अभी बना हुआ है। उसके पीछे सामग्री प्रदाता (content  provider) की मजबूत विपणन रणनीति (Strong Marketing Strategy) होती है। युवाओं की रुचि समय के साथ बदलती रहती है। किताबें अभी फुरसत में और डिजिटल माध्यम में अधिक पढ़ी जा रही हैं लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहेगा।

 

               मैं खुद अपने ही घर में देख रहा हूँ। मेरे तीनों बच्चें अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन इनके पढ़ने का तरीका देख कर मुझे गुस्सा आ जाता है। फोन लैपटॉप से पढ़ाई करते करते, तिनों जाने क्या देखने लग जाते हैं। जब टोकता हूँ तो कहते हैं, अरे कुछ नहीं बस थोड़ा सा ही देख रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर बस बकवास ही देख रहे होते हैं। ज्ञान के अलावा  फेसबुक, व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे चैनलों पर बच्चों के लिए अश्लीलता भी कम नहीं भरी पड़ी है। अब बच्चों पर निर्भर करता है कि वह कौन सा ज्ञान लेना चाहते हैं।

 

                 वैसे, मुझे लगता है हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चें, अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों से प्रतिभा में कम नहीं होते हैं। अंतर बस इतना है कि उन्हें हिंदी भाषा आती है और मुझे तो लगता है अंग्रेजी मीडियम वाले बच्चें ही ज्यादातर भाषा के मामले में कमजोर होते हैं। आज के समय में बच्चे काॅमिक्स , स्पाइडरमैन, सुपरमैन, शक्तिमान आदि से दूर हो चुके हैं इनके स्थान पर छोटे बच्चों के लिए हथोड़ी, मोटू पतलू जैसे कार्टून आते हैं जो ज्ञानवर्धक नहीं होते हैं और बड़े भी टीवी पर अधिक समय बिताते हैं या फिर, इंस्टाग्राम, फेसबुक यूट्यूब, वैवसीरिज आदि पर रहते हैं। बच्चे, युवा, बूढे और महिलाएं अपनी पसंद की सामग्री कहीं न कहीं तलाश ही लेते है पर इन सबसे उन्हे सतही जानकारी मिल पाती है चाहे अच्छी हो या बुरी। पुस्तके, शोध ग्रंथ या अच्छी पत्रिकाएं विद्वत समाज के अलावा नाममात्र लोग ही पढ़ते हैं यही हाल पत्रिकाओं का हो चुका है।

 

                दोनों ही स्तर के युवाओं में अगर राजनीतिक मामलों से संबद्ध जानकारी की भी बात की जाए तो युवा वर्ग में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई पड़ती, वह तब ही इसमें रुचि दिखाते हैं जब किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी होती है और तब वह इसके लिए मनोरमा ईयर बुक प्रतियोगिता दर्पण इंडिया टुडे आदि पत्रिकाओं को पढ़ते थे परंतु अब वह भी नहीं पढ़ते एक की इसके लिए भी उन्हें ऑनलाइन क्लासेज के जरिए सारी सामग्री उपलब्ध हो जाती है। जहां तक मनोरंजन का सवाल है इसमें भी जिन बच्चों का जन्म 1990 से 2010 के बीच हुआ है, वह समय जब मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम था और सोशल मीडिया की चकाचौंध से इस कदर प्रभावित नहीं हुआ था, उस समय के बच्चों में  किताबों के प्रति थोड़ी बहुत दिलचस्पी थी, बच्चों में हैरी पॉटर जैसे किताबों के प्रति अधिक रूचि रखते हुए हमने देखा है। लेकिन अब किताबों के प्रति कोई खास रूचि नहीं दिखती क्योंकि उनके लिए मनोरंजन हो या ज्ञान सबके लिए यूट्यूब, व्हाट्सएप अथवा फेसबुक एक आसान सा साधन बन गया है। जहां दिमागी  कसरत नहीं करनी पड़ती, किताबों के पन्ने उलटने जैसी मेहनत नहीं करनी पड़ती। बहुत ही कम युवा पीढ़ी होंगे जो किताबों में खास रुचि रखते हैं। किताबों में उनका रूचि बनाए रखने के लिए या उनके रूचि में वृद्धि करने के लिए लिखने वालों को भी खास मेहनत करनी पड़ेगी मुझे ऐसा लगता है। साथ ही उन अभिभावकों को भी जिनके बच्चे किताबों से कटते जा रहे हैं उन्हें भी उतना ही श्रम करना होगा। बच्चे किताबों से कट रहे हैं यह तो पक्का है। अब सवाल उठता है कि फिर समाधान क्या है? स्वास्थ्य वर्धक खाना स्वादिष्ट भी हो तो शायद बात बने। सही बात तो मनोरंजक ढंग से परोसें। बाकी आजकल के बच्चें किसी भी मीडियम में पढ़े हो अपने मनोरंजन और ज्ञान पाने के तरीके ढूँढने में माहिर होते है। टीवी, मोबाइल, गेम्स, मूवी वगैरह में से अपनी जरूरत के मुताबिक सीख ही लेते है और पोलिटिक्स हो या बॉलीवुड फैशन हो या करेंट इश्यूज़ हो सारे न्यूज़ से वाकिफ रहते है। विविध एप युवाओं के ज्ञान और मनोरंजन का साधन बन गए है। दुखद बात ये हैं कि किताबें हो या न्युज पेपर बस एक झलक मात्र के लिए हो गए है।

 

 

 

            अंग्रेजी मीडियम के बच्चें हो या हिन्दी मीडियम के बच्चें सबकी रुचि और रुझान समान है। मोबाइल/ कुछ ही सेकंड में मनोरंजन ज्ञान एक ही जगह उपलब्ध करा देता है। लेकिन आजकल बच्चों का रुझान सोशल मीडिया की ओर बढ़ा है। वैसे तो मोबाइल के द्वारा मुट्ठी में पूरी दुनिया है। मोबाइल बच्चों के मानसिक और शारीरिक सम्बन्धित बहुत सारी परेशानियां उत्पन्न कर रहा है। जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

 

 

 

श्री नरेन्द्र  कुमार

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगाॅंव,  थाना+अंचल – संदेश,

जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – ८०२३५२

ईमेल –  nka35333@gmail.com

मोबाइल सं० – ८५८४०००९२३



*आज के युवा जीवन से पलायनवादी क्यों*

 

आज के युवा जीवन से पलायनवादी क्यों

      आज की पीढ़ी की मानसिक स्थिति कैसी है। जो एक असफलता या कोई विषम परिस्थिति आने पर किसी एक व्यक्ति से सम्बंध टूटने पर जान दे देते हैं। क्या उस व्यक्ति के बाद दुनिया ही नहीं रहेगी। क्या सफलता के सारे रास्ते बंद हो गए। क्या अब जीवन जीने कोई तरकीब या वजह शेष नहीं रहा। इसको समझना जरूरी है।

 

      अभी दस दिन पहले हमारे एक पड़ोसी के बेटे ने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, पड़ोसी बाहर पदस्थापित थे, पत्नी छोटे बेटे के साथ कही शादी में सम्मिलित होने बाहर गयी थी । इस बीच बेटे ने ये कदम उठाया । शायद पढ़ाई के तनाव के कारण यह घटना घटित हुई।

      पढ़ाई का दबाव हो या प्यार का मामला हो या अन्य कोई समस्या उससे संघर्ष करने के बदले आत्महत्या, उस समस्या से पलायन करने का आसान तरीका है। आत्महत्या की बढ़ती संख्या यह बताती है कि आज समाज में संघर्ष करने की शक्ति कितनी कम हो गई है। जीवन में असफलता मिलने पर आज के नौजवान अपनी जीवनलीला समाप्त करने पर उतारू हो जाता है वह यह नहीं सोचता सफलता पाने के लिए असफलता कि द्वार से ही गुज़ारना पड़ता है।

        पढ़ाई का दबाव और प्यार के मामले के अलावा माँ बाप का तनाव भरा रिश्ता घर का खराब माहौल , माँ या बाप का घर से बाहर अनैतिक सम्बन्ध भी एक कारण है । समाज में बच्चे जब बाहर उनके लिए फुसफुसाहट सुनते है तो कभी-कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते । माता-पिता द्वारा जो प्रतिशत का दबाव बना रहता है वो कम हो, जिससे बच्चे कम अंक लाने पर भी माता-पिता को खुलकर बता सकें। जिस विषय में रुचि हो वो भी बता सकें। अभिभावक को अपने बच्चे से उसकी मानसिक दृढ़ता को ध्यान में रखते हुए ही अपेक्षा रखनी चाहिए। ज्यादा अपेक्षा और उस अपेक्षा को पूरा करने के लिए दबाव बनाने से बच्चे उस लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर पाते या उतना परिश्रम नहीं कर पाते तो अवसाद में चले जाते हैं।

        आज कल के जो युवा हैं उनका पालन पोषण  इस तरह से किया जाता है कि जीवन में असफलता मिलते ही निराशा हावी  हो जाती है और आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगते हैं। आज के युवाओं में सहन शक्ति व विपरीत परिस्थितियों में काम करने की क्षमता का कम होने के बहुत सारे कारण है। जिसमें संयुक्त परिवार का विघटन और भावनात्मक दिमागी मनोवैज्ञानिक सहयोग का न होना भी एक महत्वपूर्ण कारण कहा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जीवन में इतना महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए कि उसके खातिर  व्यक्ति अपने जीवन को खत्म कर ले। बच्चों से हर अच्छी बुरी बात शेयर करनी चाहिए (विशेष किशोर बच्चों से) ये तो एकांगी बात हुई संयुक्त परिवार में किसी एक की मुसीबत पर सब सहायतार्थ खड़े होते थे । आज जैसा अकेलापन नहीं हुआ करता था।

        मेरी युवा बेटी ने एक तरह से पूछा ही मुझसे की उसके सारे दोस्त नव वर्ष की पार्टी रख रहे हैं तो वह भी जाएगी। उस पर हमें उस से कहना चाहिए था कि हाँ, ठीक है, जा सकती हो तुम। लेकिन जल्दी वापस आ जाना। मेरे कहने का मतलब होता जमाना ठीक नहीं है। लेकिन मैंने कहा कि उसे अभी अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उस पर वह कुछ पल मुझे देखती हुई बोली कि उसे पता है, उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना है। मैं चिंता ना करूँ, क्योंकि वह  बड़ी हो गई है। अपना ख्याल रखना आता है उसे। उसकी बात पर मुझे हंसी आ गई। लगा सच में मेरी बेटी बड़ी ही गई है। आज के बच्चे काफी समझदार हैं, उन्हें अपना भला बुरा पता है। पढ़ाई का दबाव हो या उसके दोस्तों को लेकर बात-बात पर टोका टाकी बच्चों को अपने अभिभावक से और दूर कर देते हैं। हाँ, सही गलत का ज्ञान देना गलत बात नहीं है। पर हिटलरशाही बने रहने से बच्चे और हाथ से बाहर निकलते चले जाते हैं।

      कई माता-पिता को कहते सुना है कि आज के बच्चे इतनी सुविधाएं मिलने के बाद भी ठीक से पढ़ते लिखते नहीं हैं। लेकिन उन्हें यह बात समझ में नहीं आती कि आज प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को सहयोग करनी चाहिए, न की दबाव दें। बच्चों के साथ दोस्त बनकर रहने से माता-पिता और बच्चों के बीच ज्यादा मजबूत रिश्ता बन पाता है। ऐसा मुझे लगता है।

 

       मुझे लगता है कुछ अपवादों को छोड़ कर आज कल के युवा हमारे समय के युवाओं से बहुत ज्यादा समझदार और परिपक्व हैं। वे अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक हैं। वयस्क जीवन में उन्हें क्या बनना है और वे अपने गोल को पूरा करने में जी  जान लगाने से पीछे नहीं रहते। बच्चों पर कभी किसी तरह का दबाव मत डालिए। उन्हें उपदेश या सीख मत दीजिए। जो काम आप उन्हें करता हुआ देखना चाहते हैं। उन्हें आप स्वयं करिए क्योंकि बच्चे सदैव अपने माता-पिता का अनुकरण करते हैं। सदा उनसे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। मेरा तो मानना है कि बच्चे को जिस भी क्षेत्र में अपनी पहचान  बनानी है, बनाने दें, वरना, जीवन भर उनके मन में इस बात को लेकर कुंठा बनी रहेगी कि मैं जो करना चाहता था। करने नहीं दिया गया बच्चों पर अनुचित दबाव, एकतरफा प्यार और समस्याओं से पलयनवाद जैसे कारणों से अवसाद होता है और आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाए जाते हैं। मनोवैज्ञानिक और अभिभावकों के अलावा सच्चे दोस्त इससे उबरने का रास्ता बताते हैं। दुनिया में जीने के हैं सौ कारण है । उसे एक कारण से ना मिटाए पलायनवादी न बने। यह समस्या का समाधान नहीं कायरता की निशानी है।

 

 

श्री नरेन्द्र  कुमार

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगांव,  थाना+अंचल – संदेश, जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – ८०२३५२


 


मंगलवार, 21 मार्च 2023

*दोषी का दोष या दोष व्यवस्था का*

 

*दोषी का दोष या दोष व्यवस्था का*

 

       आए दिन विभिन्न प्रकार के आपराधिक घटनाएं हो रही हैं और इनकी तादाद दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। इसका दोष कौन है। पारिवारिक परिवेश, सामाजिक परिवेश या यह व्यवस्था। आज बहुत से अपराधी लोग समाज में आम लोगों के बिच अपने अपराध का बगैर प्रायश्चित किए हुए या न भोगे हुए प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस पर हमें हमारी समाज हमारी व्यवस्था को सोचनी चाहिए।

 

 

       मैं श्रद्धा आफताब केस का कोई भी जिक्र न करते हुए सिर्फ रिफरेंस याद करते हुए एक सवाल उठाना चाहता हूॅं । जब कोई हत्यारा या टार्चर करने वाले का यह व्यक्तित्व सामने आता है कि उसने इतनी खूंखार हत्या इसलिए की, या बेरहम इसलिए था क्योंकि वह मेंटल डिसऑर्डर से ग्रस्त था। वह साइकोपैथ, नारसिस्ट , बार्डर लाइन पर्सनेलिटी का था। उसे उचित सजा नहीं होती है। कुछ सालों बाद वह छूट भी जाता है। लेकिन  मेरे हिसाब से ऐसा साइको पैथ अपनी क्रिमिनल एक्टिविटी से किसी मासूम और उसके परिवार के कई लोगों की जिंदगी उजाड़ देता है। उन मासूम लोगों के साथ तो यह अन्याय हुआ। फिर जो हत्यारा है वह अतिशय स्वार्थ और शातिर पन में किसी को बरबाद कर दिया । आगे भी करेगा। ऐसे भी जो क्रिमिनल होते हैं वे स्वस्थ मस्तिष्क के तो होते नहीं। फिर इन्हें छोड़ दिया जाना यानी (मृत्यु के बदले मृत्यु नहीं) कानून के साथ लापरवाही नहीं है ? यहां तो मासूम के ऊपर अत्याचार को देखा ही नहीं जा रहा। ये सवाल इसलिए कि जब भी हत्यारा खुद को मेंटल साबित कर देता है, कोर्ट क्षमा दे देती है। निठारी हत्या कांड भी इसी का उदाहरण है। अभी आफताब पर भी केस ठोस इसी वजह नहीं बन रहा।

 

      दुःख होता है कि इतने जघन्य अपराध करने के बाद भी, खुद को मेंटल कह कर अपराधी कानून के आंख में धूल झोंक कर बच निकलता है। फिर कानून और इंसाफ का क्या मतलब है ? क्या सच में कानून अंधा है ? क्या यह हमारे कानून व्यवस्था की खूबी है,  सात खून भी कर दे तो पहले केस ही सालों साल लटकाया जाता है और फिर उसे मेंटल डिस्आर्डर साबित करके फांसी से बड़ी आसानी से बचाया जाता है।

 

      आज हमें ऐसे कानून व्यवस्था के विरुद्ध आवाज भी उठनी चाहिए सजा भी मिलनी चाहिए गलत को गलत कहना चाहिए। सिर्फ  कैंडल मार्च कर लेने और फिर उसके बाद सब दरवाजे बंद करके अपने घरों में बैठ जाएंगे ऐसे नहीं होगा । बस हो गया काम पूरा फिर उसके किसी को इन्साफ मिले या ना मिले हमें क्या ? जनता को आवाज़ उठाना चाहिए तभी सुधार आएगा ऐसा आंदोलन जो पुरे देश में नई क्रांति को जन्म दे और गुनाहगार बच ना सके।

 

      हम सभी को शर्म आनी चाहिए की हमारे देश में ऐसे हत्यारों को भी बचाने के लिये वकील तैयार खड़े हैं, उनके ज़मानत और बचाव के लिये तरह तरह के आर्ग्यूमेंट तरकीब करते हुए बचा कर अपनी जीत पर खुश होते हैं। ऐसे दरिंदों का केस लड़ने वाले वकील यह भूल जाते है कि हम अन्याय का साथ देकर ऐसे मुजरिम को बढ़ावा दे कर उन्हें और मजबूत कर रहें हैं।  भारतीय कानूनी प्रक्रिया में सिर्फ वकील का रोल ही विचार योग्य नहीं होता वरन् सम्पूर्ण प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए अदालत में जो व्यवस्था है वह सुधार करने योग्य है। एक तरफ न्यायालयों में जजों की भारी कमी है। दूसरी तरफ स्टाफ में बहुत भ्रष्टाचार है। बावजूद इसके कि सरकार की तरफ से इसे रोकने की दिशा में काफी कुछ किया जा रहा है। लेकिन जनता भी अभी समझने में मदद नहीं कर रही है। अदालतों में सामान्य आदमी बिना मांगे घूस देता है। उसे बिना घूस दिए सन्तोष ही नहीं होता। भले उसका केस जीतने वाला ही हो। उसे खुद कानून और न्याय पर भरोसा नहीं होता। इसलिए जनता की मानसिकता को भी बदलना जरूरी है।

 

             किसी और की वो न हो जाय। जलन और स्वार्थ हिंसा का ही रूप है ये लक्षण एक सामान्य अपराधी के भी होते हैं। फिर सारे अपराधों को साइको कहकर छोड़ ही दिया जाये और आम लोग शिकार बनते रहें। एक समय था जब अपराध की सजा भयंकर होती थी। फिर यह युग आया जब अपराधी के अपराध करने के दृष्टिकोण को भी डेमोक्रेसी से जोड़कर देखा गया, ताकि उनके अधिकारों का उल्लंघन न हो । लेकिन ऐसा करते हुए अंधता इसी ओर बढ़ गई और अब शिकार लोग ही और ज्यादा अन्याय सह रहे हैं। कोल्ड ब्लेडेड मर्डर यानी पूरी योजना से हत्या का मामला है उसने स्वीकार किया है कि उसके रोने के कारण एक दिन छोड़ दिया था पर इस अंदेशे से कि वह किसी के पास चली जाएगी उसे मार डाला। मेरे कहने का मकसद है कि चाहे वो साइको ही हो। तो भी जघन्य हत्या की सजा इसी अनुपात में होना चाहिए। ताकि दूसरे साइको को भी इसकी जानकारी हो। साइको हमेशा स्वयं को कानून से ऊपर समझता है। उसे उसकी सीख दी जानी चाहिए। वो साइको है। लेकिन इतना पागल नहीं कि अपना भला बुरा नहीं समझता हो। जरा सोचो अगर साईको है तो खुद के भी अंग काटे ना। ये सब सज़ा के बचने के तरीके होते हैं। साइको है तो अपने आप को भी नुकसान पहुंचाना चाहिए। अपने घर वालो को भी नुकसान पहुँचाना चाहिए। ऐसी मानसिकता वालों को कठोर सजा मिलनी चाहिए।

 

           आजकल सभी कुछ व्यवसाय हो गया है। अपराधी अपराध करने के पूर्व ही बचने का मार्ग सोच लेता है।  ऐसा करने के लिए किस किस की मदद ली जाती है यहां कह नहीं सकते। बस यहीं साहित्यकार का दायित्व बढ़ जाता है। साहित्यकार अपने विचार को प्रभावी तरह से प्रस्तुत कर समाज को चेता सकता है या यूँ कह सकते हैं कि समाज की आंखें खोल सकता है।  कलमधारी निष्ठा से जुड़े रहे.. बदलाव की उम्मीद के साथ.. यही कर सकते हैं।

श्री नरेन्द्र  कुमार

पिता श्री राजनाथ सिंह

ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगांव,  थाना+अंचल – संदेश,

जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – 802352

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

*खड़ा-खड़ी, नेपाल चला चीन की गली *

 *खड़ा-खड़ी, नेपाल चला चीन की गली *

भारत के विदेशमंत्री डॉ. एस जयशंकर ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के इंडिया @75 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि दुनिया महात्मा गाँधी और बुद्ध के विरासत को मानती है और हम इन्हें मानने वाले लोग हैं।

तो 

नेपाल विदेश मंत्री ने कहा बुद्ध नेपाली थे भारत हमारी विरासत अती कर्मण कर रहा है।


तो भारत का सफाई -- विदेश मंत्री एस जयशंकर के भगवान बुद्ध से जुड़े बयान पर रविवार को विदेश मंत्रालय ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ था और वह स्थान नेपाल में है।

    तो हम कहना चाहेंगे अरे भाई आपके यहाँ बुद्ध नहीं सिद्धार्थ हुए थे बुद्ध तो वे हिंदुस्तान में बने तो अधिकार तो हमारा हि हुआ न खैर वे आपके थे अगर आप मानते भी हो तो जहाँ के वे निवासी थे वहाँ के लोगों  का आपने अधिकार सिमित कर दिए दोयम दर्जे का नागरिक बना दिए कुछ तो शर्म करो। कहि आप बुद्ध बुद्ध का गुल खिला कर नेपाल को चीन के हाथ बेचने तो नहीं जा रहे हैं। बुद्ध बुद्ध भाई कह कर नेपाल चीन के हो जाई जैसे हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा दिया उसके बदले में मानसरोवर अरुणाचल लेह का कुछ हिस्सा ले लिया । 






सोमवार, 3 अगस्त 2020

सोचो

*सोचो*

     एक वामपंथी एक देश का प्रधान बनता है। वह उस देश का इतिहास, भूगोल, संस्कृति और विज्ञान बदलने का प्रयास करता है और बदलाव करता भी है। जैसे देश को हिन्दू राष्ट्र से धर्मनिरपेक्ष घोषित करना , श्री राम को अपने देश का बताता है, दूसरे देश का विवादित भूमि को अपनी नक्शा में शामिल करता है। अपना कुछ गाँव तीसरे देश को दान में दे देता है। सीमा क्षेत्र में बने सड़क पुल को अपने लिए आपदा का कारण बताता है।

     वहीं वामपंथी विचार के लोग हिंदुस्तान का इतिहास भूगोल विज्ञान लिखते है । इनके लेखन को हि हिंदुस्तान में पढ़ाया जाता है।

      सोचो आप अपने मस्तिष्क पर दबाव डालो ए हिंदुस्तान के साथ क्या किए होंगे या किए हैं। इन्होंने अपनी लेखनी द्वारा हिंदुस्तान को हरसंभव प्रयास किया है । स्वतंत्रता के बाद सत्ताधारी पार्टी से इनका आपसी सहमती या समझवता हुआ कि आप देश पर शासन करो हमें शिक्षा तंत्र को चलाने दो। जिसके अंतर्गत शिक्षा के सम्पूर्ण इकाईयों में इनका नियुक्ति हुआ इनका संगठन बनाया गया ।

     इन लोगों ने वास्तविक सही ज्ञान विज्ञान और इतिहास को हरसंभव मिटाने का प्रयास किया है। कुछ सही ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल की जानकारी है। वो अपने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को  जनश्रुति और कुछ दुर्लभ प्रतिलिपि से प्राप्त होता है।

      ए लोग बहुत हद तक अपने लक्ष्य में कामयाब भी हो रहें हैं। हमारी पीढ़ी अपनी ज्ञान विज्ञान संस्कृति से दूर होती जा रही है। स्वच्छन्दता में पर कर जाने अनजाने नास्तिकता कि और बढ़ रही है।

     अभी भी हमारे पास समय है अपने आप को सम्भालने का और अपना गौरव पुन हासिल करने का।

            सोचो, सोचो, सोचो 


गुरुवार, 11 जून 2020

*मूत्र कि महिमा*


*मूत्र कि महिमा*

मूत्र कि महिमा इसे हम इसका महता के तौर पर कह सकते हैं । इसे हम विभिन्न नाम से जानते हैं । जैसे युरिन (Urine) पेसाब आदि । मूत्र जाँच के द्वारा उस में पाये जाने तत्वों द्वारा विभिन्न प्रकार के रोगों का पता चलता है । मूत्र में विभिन्न औषधि  गुण पाया जाता है । आज भी कुछ लोग इसे ऐन्टीसेपटी कि तरह इस्तेमाल करते हैं जब कट जाता है तो उस पर अपने मूत्र का त्याग करते हैं । अपना कान बहने में भी कहीं कहीं इस्तेमाल करते हैं । गाय का मूत्र का कहना हि क्या इससे विभिन्न रोगों के यहाँ तक कि केन्सर के ईलाज के लिए भी औषधि बनाते हैं । आपको यहाँ बताते चले कि गऊ मूत्र में देशी गाय इस्तेमाल होता है । अरब के लोग ऊँट का मूत्र को भी पीते हैं उसका कारण वहीं बता सकते हैं ।

        एसा सुनने में आता है कि बहुत सारे धार्मिक गुरु किसी को अपना चेला बनाने के लिए भी उसका सर का मुंडन अपने मूत्र से कराते हैं । अघोड़ी लोग भी स्वयं का मूत्र का पान करते हैं ।

        ए सब स्थिति परिस्थिति के बाद आपको एक सच्ची घटना का आपके सामने लाने का प्रयाश करता हूँ । बात 90 कि दशक कि है बिहार में उस समय एक नेता हुआ करते थे झूले लाल । उनका सत्ता और लोगों पर अच्छी पकड़ थी । वे समय-समय पर भोज और अन्य प्रकार का आयोजन करते रहते थे जिसमे उनके कार्यकर्ता और अन्य लोग सामील होते रहते थे । एसे झूले लाल का परिवार लंबी चौरी थी । उनका यहाँ चर्चा करना जरूरी नहीं समझता । उनके दो लड़के थे इशू प्रताप और विषु प्रताप दोनों में कई प्रकार कि उदंडता विधिमान थी । जो आगे चलकर लोगों पर रौब के रूप में इस्तेमाल करने लगे खैर उनका इन सब बातों का इस कहानी या लेख में चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है ।

       उसी समय काल में झूले लाल ने अपने लोगों के लिए भोज का आयोजन किया था । उनके सरकारी निवास पर लोगों कि हुजूम लगी हुई थी। उसमे गाँव पंचायत के मुख्य मुख्य लोग आए हुए थे । कुछ लोग व्यवस्था बनाने में भी अंदर बाहर कार्य कर रहें थे । उसी समय कुछ लोग आपसी सहमति से बोले चलो देखते हैं भंडार में क्या-क्या बन गया है भूख लग रही है । जब वे अंदर गए तो वे देख रहें हैं कि झूले लाल के दोनों लड़के इशू प्रताप और विषु प्रताप वहाँ पहले से हि उपस्थित हैं । उनके हरकत देख अब इन लोगों से कुछ कहा नहीं जा रहा था। एक पीछे वाला व्यक्ति बोला क्या हुआ देखा तो वो भी पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था । दूसरे ने तुमने नहीं देखा क्या ? तो ओ बोला देखा तो क्या अंदर में हि कर रहा था ? तीसरा बोला तब क्या ? चौथा बोला क्या इस बात को झूले लाल जी को बताया जाए  बताने कि बात पर सहमति नहीं बन पाई । उनमे से कुछ लोग एक दूसरे को बता कर वहाँ  से निकलने  का प्रयास करने लगे इससे कुछ और लोग जान गाए । पर बात वहीं दबा दी गई या दब गई जो जान गए उसमे से कुछ बहाना बना कर निकल गए कुछ जो विशेष चापलुष थे वहीं रुके कुछ ने खाया कुछ नहीं खा पाये और लोगों ने जम कर आनंद लिया ।

        आज दोनों इशू प्रताप और विषु प्रताप भी नेता गिरी कर रहें है । लोगों का नेतागिरी करने का कई कारण हैं यहाँ सब कुछ प्राप्त होता है । इन्हे तो बना बनाया विराशत मिल गया है । ए कहीं सफल नहीं हो पाये तो यही सफल होने में लगे हैं।
   
      आज जो मैं देख रहा हूँ उसमें से बहुत लोगो का पीढ़ी नेतागिरी कर रही है उसी स्तर पर जिस स्तर पर वे कर रहें थे और जो आज भी उस भोज को खाने वाले हैं झूले लाल के परिवार के प्रति सहानुभूति रखते हैं ।

        अब मैं आपको यहाँ भंडारा के अंदर वाली घटना बताना चाहूँगा कि उस समय इशू प्रताप और विषु प्रताप वहाँ क्या कर रहा था । बैगर उस घटना के उजागर हुए सारी बात स्पष्ट हो नहीं पाएगी । उस समय झूले लाल के लड़के भंडारे में हि मूत्र त्याग कर रहे थे ।
         हमें यह घटना उन्हीं लोगों में से एक ने सुनाया था । अब आप सोच रहें होंगे कि सब ठीक है पर यह घटना को हमने आप सभी के साथ साझा क्यों किया । इसका कारण है कि झूले लाल के लड़कों को सारी सुविधा मिला फिर भी कहीं सफल न हो सके । उन्मे एसा कोई गुण नहीं जिसके लिए उन्हे जाना जाए सिर्फ कि वे झूले लाल के लड़के हैं । पर क्या मूत्र में एसा कोई गुण है जो लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बना सके । यह प्रश्न विचारनिए हैं । क्या आज जो लोग झूले लाल के लड़के में अपना नेता ढूंढ रहे हैं क्या वह उस मूत्र का प्रभाव है या जातिवाद ,वंशवाद या लोगों कि गुलाम मानसिकता का सूचक है ।

       इस पर हम आपका राय जानना चाहेंगे साथ में अगर कोई उस घटना का साक्षी हो या जनता हो तो उनका पुष्टि । तब तक के लिए आप सभी को नमन ।  




रविवार, 10 नवंबर 2019

* छठ पूजा के साथ सनातनी सोच *

छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ के साथ सभी वर्ती को नरेन्द्र कुमार का नमन🌹🙏🌹
     

  साथ में 

एक वैचारिक लेख 

* छठ पूजा के साथ सनातनी सोच *


छठी पूजा आज लगभग पूरे विश्व में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है । बिहार, उत्तर प्रदेश में खास तौर पर जिस गाँव घर में वर्ष भर मंगल रहती है वहाँ यह अवश्य ही मनाई जाती है । इसके साथ लोगों की अध्यात्मिक दर्शन ज्ञान वैज्ञानिक दृष्टिकोण जुड़ा हुआ है । इसके संबंधित अनेक लोककथा प्रचलित । इसकी पवित्रता और अध्यात्मिक सत्यता पर संदेह नहीं किया जा सकता । हमारे यहाँ इसे इस्लाम सम्प्रदाय के कुछ परिवार भी इसे मनाते हैं ।  कुछ सम्प्रदायसम्प्रदायीक लोगों के विरोध के कारण इन लोगों ने मनाने का तरीका में कुछ विशेष व्यवस्था  किया है । 


                 ईस में चार दिन का अनुष्ठान होता 1. नहाय खा  2. लोहर  या  खरना 3. सूर्य को संध्या प्रथम अर्ध 4. सूर्य को प्रातः दूसरी अर्ध तदुपरांत पारन । यह एक समरसता का पर्व है । इसे करने और कराने दोनों का अपना ही महत्व है । 

                                देव सूर्य मंदिर को शायद आप जानते हो ,  इस मंदिर में प्रवेश द्वार पहले पूर्व की ओर से था । मुगल काल में उस  मंदिर तोड़ने के लिए मुगल लोग गए तो वहाँ के पुजारी और आम जनता उसे बचाने के लिए उसकी महिमा का गूण गान किए  तर्क दिए तो मुगलों ने एक शर्त रखा , ओ बोलें हम आज जा रहे हैं कल आयेंगे अगर मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर हो जाएगा तो इसे छोड़ दिया जाएगा  और आप देख सकते हैं कि मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर है ।

     
                       इस पर्व में सूर्य को अर्ध जल स्रोत के पास फल से और अन्य पोस्टिक पदार्थ से दिया  जाता है । इस पर्व का एक कारण वर्षा और बाढ़ से जो जल स्रोतों को छती हुई होती है और लोगों के आहार विहार जो कमी कसर हो जाती है उसे पूर्ण करना भी है ।