· आज के युवा अपने ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं
एक गंभीर प्रश्न है कि
इंग्लिश मीडियम से या हिन्दी मीडियम से पढ़ कर आने वाले साधारण स्तर के युवा अपने
ज्ञान और मनोरंजन के लिए क्या पढ़ते हैं और क्या उपलब्ध है, चाहे हिंदी में या
इंग्लिश में। वे शायद आमतौर पर व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब पर ही निर्भर रहते हैं।
क्या यह युवाओं को कैरियर, प्रेम और विवाह के प्रारंभिक सालों तथा सामाजिक
राजनीतिक मामलों पर सही पूरी जानकारी देने
के लिए काफी है ? इसी तरह हिन्दी मीडियम के बहुत मेधावी युवा ज्ञान, मनोरंजन, विचारोत्तेजक
सामग्री कुछ पढ़ पा रहे हैं ? दोनों समुह के युवा जीवन जीने की तकनीक जो समाचारों
में नहीं मिलती कहां से लेते हैं या ले सकते हैं। हम लोग दोनों समुह के लायक काफी
सामग्री दें रहे हैं ?
आज मनोरंजन के रूप
में मोबाइल का इस्तेमाल युवा वर्ग जमकर कर रहा है, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम
सहित यू ट्यूब चैनल पर तरह तरह की सामग्री परोसी जा रही है। प्रतियोगिता से
सम्बंधित किताबें और पत्रिकाएं तो युवा वर्ग पढ़ रहा है, लेकिन मनोरंजन के लिए पत्र
पत्रिकाएँ पढ़ने का प्रचलन घटते जा रहा है। पहले मनोरंजन के लिए बच्चे, युवा और
राजनीति से अभिरुचि रखने वाले लोग माया, इंडिया टुडे, आउटलुक जैसी पत्रिकाएँ
ख़रीदकर पढ़ते थे। दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएँ ख़ासकर सरस सलिल तो हर घर में देखने को मिलती
थी। उस समय मनोरंजन और जानकारी के लिए हर उम्र और वर्ग के लोग पत्रिकाएँ पढ़ते थे।
आज इसमें कमी आई है प्रतियोगी छात्र गंभीर लेख और जानकारी दैनिक अख़बार के संपादकीय
पेज से लेते हैं।
मेरी जानकारी में तो OTT युवाओं के मनोरंजन का अब पहला माध्यम बना हुआ है। मोबाइल पर OTT प्लेटफार्म उपलब्ध हैं इसीलिए वह उनकी ज़रूरत बना हुआ है। वाट्स
ऐप या दूसरे सोशल मीडिया लैपटॉप में भी चलाए जाते हैं। जिन्हें प्रिंट में पढ़ने
का शौक है वो अब भी पढ़ते हैं। हिंदी भी पढ़ते हैं। उन्होंने अपनी पाठ्य पुस्तकों
में हिंदी कहानियां और कविताएं पढ़ी हैं तो वो उनके लिए अपरिचित नहीं है। लेकिन OTT और सोशल मीडिया उनकी पहली पसंद अभी बना हुआ है। उसके पीछे
सामग्री प्रदाता (content provider) की मजबूत विपणन रणनीति (Strong Marketing Strategy) होती है। युवाओं की रुचि समय के साथ बदलती रहती है।
किताबें अभी फुरसत में और डिजिटल माध्यम में अधिक पढ़ी जा रही हैं लेकिन हमेशा ऐसा
नहीं रहेगा।
मैं खुद अपने ही घर में देख रहा
हूँ। मेरे तीनों बच्चें अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन इनके पढ़ने का
तरीका देख कर मुझे गुस्सा आ जाता है। फोन लैपटॉप से पढ़ाई करते करते, तिनों जाने
क्या देखने लग जाते हैं। जब टोकता हूँ तो कहते हैं, अरे कुछ नहीं बस थोड़ा सा ही
देख रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर बस बकवास ही देख रहे होते हैं। ज्ञान के
अलावा फेसबुक, व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे
चैनलों पर बच्चों के लिए अश्लीलता भी कम नहीं भरी पड़ी है। अब बच्चों पर निर्भर
करता है कि वह कौन सा ज्ञान लेना चाहते हैं।
वैसे, मुझे लगता है हिंदी
मीडियम में पढ़ने वाले बच्चें, अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों से प्रतिभा
में कम नहीं होते हैं। अंतर बस इतना है कि उन्हें हिंदी भाषा आती है और मुझे तो
लगता है अंग्रेजी मीडियम वाले बच्चें ही ज्यादातर भाषा के मामले में कमजोर होते
हैं। आज के समय में बच्चे काॅमिक्स , स्पाइडरमैन, सुपरमैन, शक्तिमान आदि से दूर हो
चुके हैं इनके स्थान पर छोटे बच्चों के लिए हथोड़ी, मोटू पतलू जैसे कार्टून आते
हैं जो ज्ञानवर्धक नहीं होते हैं और बड़े भी टीवी पर अधिक समय बिताते हैं या फिर,
इंस्टाग्राम, फेसबुक यूट्यूब, वैवसीरिज आदि पर रहते हैं। बच्चे, युवा, बूढे और
महिलाएं अपनी पसंद की सामग्री कहीं न कहीं तलाश ही लेते है पर इन सबसे उन्हे सतही
जानकारी मिल पाती है चाहे अच्छी हो या बुरी। पुस्तके, शोध ग्रंथ या अच्छी
पत्रिकाएं विद्वत समाज के अलावा नाममात्र लोग ही पढ़ते हैं यही हाल पत्रिकाओं का
हो चुका है।
दोनों ही स्तर के युवाओं में अगर
राजनीतिक मामलों से संबद्ध जानकारी की भी बात की जाए तो युवा वर्ग में कोई खास
दिलचस्पी नहीं दिखाई पड़ती, वह तब ही इसमें रुचि दिखाते हैं जब किसी प्रतियोगी
परीक्षा की तैयारी करनी होती है और तब वह इसके लिए मनोरमा ईयर बुक प्रतियोगिता
दर्पण इंडिया टुडे आदि पत्रिकाओं को पढ़ते थे परंतु अब वह भी नहीं पढ़ते एक की
इसके लिए भी उन्हें ऑनलाइन क्लासेज के जरिए सारी सामग्री उपलब्ध हो जाती है। जहां
तक मनोरंजन का सवाल है इसमें भी जिन बच्चों का जन्म 1990 से 2010 के बीच हुआ है,
वह समय जब मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम था और सोशल मीडिया की चकाचौंध से इस कदर
प्रभावित नहीं हुआ था, उस समय के बच्चों में
किताबों के प्रति थोड़ी बहुत दिलचस्पी थी, बच्चों में हैरी पॉटर जैसे
किताबों के प्रति अधिक रूचि रखते हुए हमने देखा है। लेकिन अब किताबों के प्रति कोई
खास रूचि नहीं दिखती क्योंकि उनके लिए मनोरंजन हो या ज्ञान सबके लिए यूट्यूब,
व्हाट्सएप अथवा फेसबुक एक आसान सा साधन बन गया है। जहां दिमागी कसरत नहीं करनी पड़ती, किताबों के पन्ने उलटने
जैसी मेहनत नहीं करनी पड़ती। बहुत ही कम युवा पीढ़ी होंगे जो किताबों में खास रुचि
रखते हैं। किताबों में उनका रूचि बनाए रखने के लिए या उनके रूचि में वृद्धि करने
के लिए लिखने वालों को भी खास मेहनत करनी पड़ेगी मुझे ऐसा लगता है। साथ ही उन
अभिभावकों को भी जिनके बच्चे किताबों से कटते जा रहे हैं उन्हें भी उतना ही श्रम
करना होगा। बच्चे किताबों से कट रहे हैं यह तो पक्का है। अब सवाल उठता है कि फिर
समाधान क्या है? स्वास्थ्य वर्धक खाना स्वादिष्ट भी हो तो शायद बात बने। सही बात
तो मनोरंजक ढंग से परोसें। बाकी आजकल के बच्चें किसी भी मीडियम में पढ़े हो अपने
मनोरंजन और ज्ञान पाने के तरीके ढूँढने में माहिर होते है। टीवी, मोबाइल, गेम्स,
मूवी वगैरह में से अपनी जरूरत के मुताबिक सीख ही लेते है और पोलिटिक्स हो या बॉलीवुड
फैशन हो या करेंट इश्यूज़ हो सारे न्यूज़ से वाकिफ रहते है। विविध एप युवाओं के
ज्ञान और मनोरंजन का साधन बन गए है। दुखद बात ये हैं कि किताबें हो या न्युज पेपर
बस एक झलक मात्र के लिए हो गए है।
अंग्रेजी मीडियम के बच्चें हो या
हिन्दी मीडियम के बच्चें सबकी रुचि और रुझान समान है। मोबाइल/ कुछ ही सेकंड में
मनोरंजन ज्ञान एक ही जगह उपलब्ध करा देता है। लेकिन आजकल बच्चों का रुझान सोशल
मीडिया की ओर बढ़ा है। वैसे तो मोबाइल के द्वारा मुट्ठी में पूरी दुनिया है। मोबाइल
बच्चों के मानसिक और शारीरिक सम्बन्धित बहुत सारी परेशानियां उत्पन्न कर रहा है।
जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
श्री नरेन्द्र
कुमार
ग्राम – बचरी , पोस्ट – अखगाॅंव, थाना+अंचल – संदेश,
जिला – भोजपुर (आरा) बिहार – ८०२३५२
ईमेल – nka35333@gmail.com
मोबाइल सं० – ८५८४०००९२३